Tuesday, April 9, 2024

Chaitra Navratri

नवरात्रि के नौ दिन माता के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। भक्त पहले दिन घट स्थापना करते हैं। कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त देखना बेहद ही जरूरी माना गया है।

नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि शब्द दो शब्दों को जोड़कर बना है जिसमें पहला शब्द ‘नव’ और दूसरा शब्द ‘रात्रि’ है जिसका अर्थ होता है नौ रातें। नवरात्रि पर्व भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है। इस अवसर पर कई लोग पूरे नौ दिनों तक उपवास रख मां की अराधना करते हैं।


नवरात्रि व्रत का महत्व: नवरात्रि व्रत का पारण कन्याओं को भोजन कराके किया जाता है। कई लोग नवरात्रि के आठवें दिन कन्याओं का पूजन कर अपना व्रत खोल लेते हैं जिसे अष्टमी कहा जाता है। तो कई लोग आठ दिन व्रत रख नौवें दिन पूजन कर व्रत खोलते हैं।इसे नवमी के नाम से जाना जाता है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो नवरात्रि के नौ दिन उपवास रख दशवें दिन व्रत का पारण करते हैं। नवरात्र के दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था।

नवरात्रि के नौ दिन: नवरात्रि के नौ दिन माता के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। भक्त पहले दिन घट स्थापना करते हैं। कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त देखना बेहद ही जरूरी माना गया है। कई घरों में पूरे नौ दिन तक अखंड ज्योत भी जलाई जाती है। इन दिनों जौ उगाने की भी परंपरा है। मां को प्रसन्न करने के लिए भक्त नौ दिन माता की विधि विधान पूजा करके भजन कीर्तन करते हैं।

नवरात्रि का पहला दिन: इस दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है। माता शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं। माता के इस स्वरूप की सवारी नंदी हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बायें हाथ में कमल का फूल लिये हैं। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है।

नवरात्रि का दूसरा दिन: इस दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का ही रूप हैं। ऐसी मान्यता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं तब उनका ब्रह्मचारिणी रूप पहचान में आया था। मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है।

नवरात्रि का तीसरे दिन: इस दिन की देवी माँ चंद्रघण्टा हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम चंद्रघण्टा पड़ा था। शिव के मस्तक पर स्थापित आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी है।

नवरात्रिका चौथा दिन: इस दिन माँ कुष्माण्डा की पूजा का विधान है। शास्त्रों में माँ के इस स्वरूप का वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है कि माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। मां के इसी रूप के कारण पृथ्वी पर हरियाली है।

नवरात्रि का पांचवां दिन: इस दिन माँ स्कंदमाता की पूजा होती है। माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। इसलिए स्कंद की माता होने के कारण माँ का यह नाम पड़ा है। मां के इस स्वरूप की चार भुजाएँ हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती हैं।

नवरात्रि के छठा दिन: इस दिन माँ कात्यायिनी की पूजा की जाएगी। माँ कात्यायिनी दुर्गा माता का उग्र रूप है। जो साहस का प्रतीक है। मां शेर पर सवार होती हैं और इनकी चार भुजाएं हैं।

नवरात्रि का सातवां दिन: इस दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। ये माता का उग्र रूप है। पौराणिक कथा के अनुसार जब माँ पार्वती ने शुंभ-निशुंभ राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था।

नवरात्रि का आठवां दिन: इस दिन माँ महागौरी की अराधना की जाती है। माता का यह रूप शांति और ज्ञान का प्रतीक है। इस दिन अष्टमी भी मनाई जाएगी।

नवरात्रि का नौवां और अंतिम दिन: ये दिन माँ सिद्धिदात्री को समर्पित है। ऐसा मान्यता है कि जो कोई माँ के इस रूप की आराधना करता है उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है। माँ सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं।

चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में नौ तरह के भोग

  1. पहले दिन मां शैलपुत्री को गाय के घी से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए.
  2. दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत का भोग लगाना चाहिए.
  3. तीसरे दिन मां चंद्रघंटा मां को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए.
  4. चौथे दिन मां कूष्मांडा को मालपुआ का भोग लगाना चाहिए.
  5. पांचवें दिन मां स्कंदमाता को चीनी, केला का भोग लगाना चाहिए.
  6. छठे दिन मां कात्यायनी को मीठे पान का भोग लगाना चाहिए.
  7. सातवें दिन मां कालरात्रि को गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए.
  8. आठवें दिन मां महागौरी को नारियल का भोग लगाना चाहिए.
  9. नौवें दिन मां सिद्धिदात्री को खीर, पूरी, हलवा का भोग लगाना चाहिए.

Related Contents

Thursday, September 9, 2021

Hartalika Teej

Hartalika Teej

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि हरतालिका तीज व्रत करने से अखंड सौभाग्य के साथ सुख-शांति प्राप्त होती है। कहते हैं कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए किया था। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है।

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, हरतालिका तीज व्रत में मिट्टी से बनी शिव-पार्वती प्रतिमा का विधिवत पूजन किया जाता है। आज पूजन के दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से जुड़ी कथा को सुना जाता है। कुंवारी कन्याएं भी सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए हरतालिका तीज व्रत रख सकती हैं। कहते हैं कि एक बार व्रत रखने के बाद इस व्रत को जीवनभर रखा जाता है। बीमार होने पर दूसरी महिला या पति इस व्रत को कर सकते हैं।

हरतालिका तीज व्रत का विशेष महत्व-

शास्त्रों के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती से जुड़ी कथा का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि बिना व्रत कथा के यह व्रत अधूरा रहता है। इसलिए हरतालिका तीज व्रत रखने वाले को कथा जरूर सुननी या पढ़नी चाहिए।

हरतालिका तीज की कथा।।

हरतालिका तीज व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश भगवान की पूजा की जाती है। विवाहित स्त्रियां इस व्रत को पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना से रखती हैं तो वहीं अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए। हरतालिका तीज व्रत पूजन में कथा सुनना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यता है हरतालिका व्रत कथा स्वयं भगवान शिव ने ही मां पार्वती को सुनाई थी। जानिए क्या है ये कथा।

शिव जी कहते हैं- ‘हे गौरा, पिछले जन्म में तुमने मुझे पाने के लिए क‍ठोर तप और घोर तपस्या की थी। तुमने इस तपस्या के दौरान ना तो कुछ खाया और ना ही पीया बस हवा और सूखे पत्ते चबाकर रहीं। भयंकर गर्मी और कंपा देने वाली ठंड भी तुम्हें तुम्हारी तपस्या से हटा न सकी। बारिश में भी तुमने जल नहीं पिया। तुम्हारी इस हालत को देख तुम्हारे पिता दु:खी थे। उनको दु:खी देख नारदमुनि आए और कहा कि मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। वह आपकी कन्या की से विवाह करना चाहते हैं।

’नारदजी की बात सुनकर आपके पिता बोले अगर भगवान विष्णु यह चाहते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं। परंतु जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम अत्यंत ही दुःखी हो गईं। तुम्हारी सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तो तुमने उसे बताया कि मैंने सच्चे मन से भगवान शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने विष्णुजी के साथ मेरा विवाह तय कर दिया है। अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा है।

तुम्हारी सखी ने कहा-प्राण छोड़ने का यहां कारण ही क्या है? मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूं जो साधना स्थल भी है और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी नहीं पाएंगे। तुमने अपनी सखी की बात मानकर ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं। तुमने एक दिन रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। तुम्हारी कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने को कहा।

वर मांगते हुए तुमने कहा, ‘मैं आपका सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया। उसी समय गिरिराज अपने बंधु-बांधवों के साथ तुम्हें खोजते हुए वहां पहुंचे। तुमने कहा कि मैं घर तभी जाउंगी अगर आप महादेव से मेरा विवाह करेंगे। तुम्हारे पिता मान गए और उन्होने हमारा विवाह करवा दिया। मान्यता है जिस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया था उस दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी।





Friday, May 21, 2021

भगवान शिव के 13 रहस्यमय विचार

आज से 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे थे, तब उस काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी। उस दौरान भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया। विष्णु ने समुद्र को और ब्रह्मा ने नदी किनारे को अपना स्थान बनाया था।
पुराण कहते हैं कि जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्गलोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था। इन तीनों से सब कुछ हो गया।
 
वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था। फिर जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ और इस तरह धीरे-धीरे जीवन भी फैलता गया। 
 
भगवान शिव दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं। शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है। भगवान शिव के अनमोल वचनों को 'आगम ग्रंथों' में संग्रहीत किया गया है। आगम का अर्थ ज्ञान अर्जन। पारंपरिक रूप से शैव सिद्धांत में 28 आगम और 150 उप-आगम हैं। 

अगले पन्ने पर पहला रहस्यमयी विचार...
 

कल्पना ज्ञान से महत्वपूर्ण : आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि 'कल्पना' ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। सपना भी कल्पना है। शिव ने इस आधार पर ध्यान की 112 विधियों का विकास किया।
 
अधिकतर लोग खुद के बारे में या दूसरों के बारे में बुरी कल्पनाएं या खयाल करते रहते हैं। दुनिया में आज जो दहशत और अपराध का माहौल है उसमें सामूहिक रूप से की गई कल्पना का ज्यादा योगदान है।
 
अगले पन्ने पर दूसरा रहस्यमयी विचार...
 

बदलाव के लिए जरूरी है ध्यान : आदमी को बदलाहट की प्रामाणिक विधि के बिना नहीं बदल सकते। मात्र उपदेश से कुछ नहीं बदलता।
 
भगवान शिव ने अमरनाथ गुफा में माता पार्वती को मोक्ष की शिक्षा दी थी। पार्वती और शिव के बीच जो संवाद होता है उसे 'विज्ञान भैरव तंत्र' में संग्रहीत किया गया है। इसमें ध्यान की 112 विधियां संग्रहीत है। 
 
अगले पन्ने पर तीसरा रहस्यमयी विचार...
 

शून्य में प्रवेश करो : विज्ञान भैरव तंत्र में शिव पार्वतीजी से कहते हैं, ‘आधारहीन, शाश्‍वत, निश्‍चल आकाश में प्रविष्‍ट होओ।’ वह तुम्‍हारे भीतर ही है।
 
अगले पन्ने पर चौथा रहस्यमयी विचार...
 

भगवान शिव कहते हैं- 'वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:' अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है। -मेरुतंत्र
 
भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है।
 
अगले पन्ने पर पांचवां रहस्यमयी विचार...
 

आदमी पशुवत है : मनुष्य में जब तक राग, द्वेष, ईर्ष्या, वैमनस्य, अपमान तथा हिंसा जैसी अनेक पाशविक वृत्तियां रहती हैं, तब तक वह पशुओं का ही हिस्सा है। पशुता से ‍मुक्ति के लिए भक्ति और ध्यान जरूरी है। 
 
भगवान शिव के कहने का मतलब यह है कि आदमी एक अजायबघर है। आदमी कुछ इस तरह का पशु है जिसमें सभी तरह के पशु और पक्षियों की प्रवृत्तियां विद्यमान हैं। आदमी ठीक तरह से आदमी जैसा नहीं है। आदमी में मन के ज्यादा सक्रिय होने के कारण ही उसे मनुष्य कहा जाता है, क्योंकि वह अपने मन के अधीन ही रहता है। 
 
अगले पन्ने पर छठा रहस्यमयी विचार...
 

मरना सीखो : यदि जीवन में कुछ सीखना है तो मरना सीखो। जो मरना सीख जाता है वही सुंदर ढंग से जीना जानता है।
 
अगले पन्ने पर सातवां रहस्यमयी विचार...
 

'गायत्री-मंजरी' में 'शिव-पार्वती संवाद' आता है जिसमें भगवती पूछती हैं- 'हे देव! आप किस योग की उपासना करते हैं जिससे आपको परम सिद्धि प्राप्त हुई है?'
 
उन्होंने उत्तर दिया- 'गायत्री ही वेदमाता है और पृथ्वी सबसे पहली और सबसे बड़ी शक्ति है। वह संसार की माता है। गायत्री भूलोक की कामधेनु है। इससे सब कुछ प्राप्त होता है। ज्ञानियों ने योग की सभी क्रियाओं के लिए गायत्री को ही आधार माना है।'
 
अगले पन्ने पर आठवां रहस्यमयी विचार...
 

जीवन को सुखमयी बनाने के लिए...
 
भोजन और पान (पेय) से उत्पन्न उल्लास, रस और आनंद से पूर्णता की अवस्था की भावना भरें, उससे महान आनंद होगा। या अचानक किसी महान आनंद की प्राप्ति होने पर या लंबे समय बाद बंधु-बांधव के मिलन से उत्पन्न होने वाले आनंद का ध्यान कर तल्लीन और तन्मय हो जाएं।
 
अगले पन्ने पर नौवां रहस्यमयी विचार...
 

प्रकृति का सम्मान करो : प्रकृति हमें जीवन देने वाली है, इसका सम्मान करो। जो इसका अपमान करता है समझो मेरा अपमान करता है।
 
दुनिया का हर काम प्रकृति के नियमों और तरीकों से ही होता है, लेकिन अहंकार से ग्रसित लोग ऐसा मानते हैं कि सबकुछ वही कर रहे हैं। 
 
अगले पन्ने पर दसवां रहस्यमयी विचार...
 

विस्मयो योगभूमिका:।
स्वपदंशक्ति।
वितर्क आत्मज्ञानमू।
लोकानन्द: समाधिसुखम्। -शिवसूत्र
 
अर्थात : विस्मय योग की भूमिका है। स्वयं में स्थिति ही शक्ति है। वितर्क अर्थात विवेक आत्मज्ञान का साधन है। अस्तित्व का आनंद भोगना समाधि है।
 
अगले पन्ने पर ग्यारहवां रहस्यमयी विचार...
 

अपनी तरफ देखो- न तो पीछे, न आगे। कोई तुम्हारा नहीं है। कोई बेटा तुम्हें नहीं भर सकेगा। कोई संबंध तुम्हारी आत्मा नहीं बन सकता। तुम्हारे अतिरिक्त तुम्हारा कोई मित्र नहीं है। -शिवसू‍त्र 
 
अगले पन्ने पर बारहवां रहस्यमयी विचार...
 

आत्‍मा चित्‍तम्।
कलादीनां तत्‍वानामविवेको माया।
मोहावरणात् सिद्धि:।
जाग्रद् द्वितीय कर:। -शिवसूत्र
 
अर्थात आत्‍मा चित्‍त है। कला आदि तत्‍वों का अविवेक ही माया है। मोह आवरण से युक्‍त को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैं, लेकिन आत्‍मज्ञान नहीं होता है। स्‍थायी रूप से मोह जय होने पर सहज विद्या फलित होती है। ऐसे जाग्रत योगी को, सारा जगत मेरी ही किरणों का प्रस्‍फुरण है, ऐसा बोध होता है।
 
अगले पन्ने पर तेरहवां रहस्यमयी विचार...
 

अपनी जागरूकता का विस्तार करो। अन्य प्राणियों के शरीर में अपनी जागरूकता का विस्तार करके महसूस करो कि वे क्या सोचते हैं। अपने शरीर की जरूरतों को एक तरफ छोड़ दो।- शिवसूत्र

Sunday, May 16, 2021

India’s Top 5 Hindu Temples


India’s Top 5 Hindu Temples

There are about 900 million Hindus in the world and most of them are found in India. There are thousands of Hindu temples in this country and each one is famous for its own specialties. There is a wide variety of temples like temple built out of one rock, temple built with gold leaves, temple with hanging pillar and so on. This article talks about top five Hindu temples in the country.

1. Meenakshi Amman Temple
Meenakshi Amman Temple is dedicated to Goddess Meenakshi Amman and Sundareswar (a form of Lord Shiva and Lord Parvathi). There is no specific detail about when this temple was built. Descriptions of this temple is found in literature that was written in 7th century and thus, it is believed that it was built before that period. The present structure was built in 17th century as a remodeling due to damage by invaders. This temple has 14 towers and 2 golden gopuras. This temple has a hall of thousand pillars. Every year, millions of people visit this temple. During an annual celebration that takes place in April and May, more than a million people would be visiting this temple to witness the celebration. Other important specialties are the temple tank, sculptures on the ceiling, unique rituals and others.

This temple is located in Madurai, Tamil Nadu. It is located on the banks of River Vaigai. It is 11 km away from Madurai International Airport.


2. Virupaksha Temple
Virupaksha Temple is the oldest Hindu temple that is still functioning from the day of inauguration. It was built in 7th century. It is not just a simple temple. It is a complex of many temples and most of them were built during Vijayaraja dynasty. This temple is located in Hampi which is 350 km away from Bangalore, Karnataka. It is a world heritage site.

This temple has pillared halls, gateway and courtyard. The gateway is a very majestic one which stands, 500 metre tall. A small channel is built through the temple through which River Tungbhadra flows through the temple. During the celestial betrothal festival in December and chariot festival in February, this Hindu temple would be at its prime beauty and you can find a lot of people here.


3. Khajuraho Group of Temples
Khajuraho group of temples is a world heritage site and the only temple in India with erotic sculptures. These temples were built in 9th and 10th century. A few temples in this complex are dedicated to Jainism. This complex is also famous for temples for Brahma, creator of world. These temples are located about 175 km away from Jhansi, Madhya Pradesh, India. It is said that there were 85 temples in this complex and only 12 are remaining standing today. A lot of people visit here for its collection of extraordinary sculptures. Damaged sculptures are collected and showcased in a museum, nearby. The most famous attraction in Khajuraho Dance Festival that is celebrated in February.


4. Brihadeeswarar Temple
Brihadeeswarar Temple is located in Thanjavur, Tamil Nadu. This shrine is dedicated to Lord Shiva and Parvathi. It was built in 10th century and is the first temple in India to be built completely with granite. It is one of the world heritage sites and is also called as the Great Living Chola Temple. This is world’s tallest temple tower of 216 ft height. The apex of this temple is a single rock that weighs 80 ton. This is an important tourist destination in South India. The temple car festival is an important event in this temple.


5. Puri Jagannath Temple
Puri Jagannath Temple is a very famous temple located in Puri, Odisha. It is about 60 km away from Bhubaneswar. This is an important destination for Hindu pilgrimages. The main deity is made of wood and is replaced at intervals. This temple was built in 12th century. It is said that this temple was built on the place of ruins of an ancient temple. This temple has 21 shrines in it. The chariot wheel in this temple is an important element. A lot of people visit here during the car festival. It is one of the few temples which should be visited by Hindus at least once in his lifetime. It is a heritage site and is completely made of granite stone.

The temple has six gopurams, numerous sculptures and inlay paintings. There are about 6000 priests in this temple. This is the largest temple in the state and covers an area of 10 acres.

Puri Jagannath TempleThis is not the exclusive list. There are a lot of other interesting temples like; Badrinath temple of Uttarakhand, Somnath temple, Kedarnath Temple, Ramanathaswamy Temple, Triupathi Venkateshwara Temple and so on.


Chaitra Navratri

नवरात्रि के नौ दिन माता के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। भक्त पहले दिन घट स्थापना करते हैं। कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त देखना बेहद ही...