Monday, September 30, 2019

Navratri

नवरात्रि व्रत रखने वाले जरूर करें संध्या आरती, दुर्गा चालीसा का पाठ, जानिए पूजा विधि, दुर्गा पूजा के नियम, विधि, सामग्री और अन्य सभी जानकारी...
शारदीय नवरात्रि से संबंधित संपूर्ण जानकारी मिलेगी यहां।
Navratri 2019 Puja Vidhi, Samagri, Mantra, Procedure :
नवरात्रि पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। इस पर्व का पहला दिन पूजा पाठ की दृष्टि से काफी अहम होता है। कलश स्थापना के बाद नवरात्रि का व्रत रखने वाले सभी व्रतियों को मां दुर्गा का नियम पूर्वक पूजा पाठ करना होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार मां जगदम्बा ने असुरों का संहार करने के लिए रुद्र रूप लिया था, इन सबके बारे में विस्तार से दुर्गा सप्तशति में बखान किया गया है। इसके अलावा ये भी माना जाता है कि सुबह शाम दुर्गा चालीसा का पाठ करने से भी मां प्रसन्न होती हैं। आप हमारे इस ब्लॉग के जरिए अगले नौ दिन पूजा करने की विधि, संध्या आरती, नियमित दुर्गा पाठ आदि की विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं…
दुर्गा चालीसा का पूरे नवरात्रि करें पाठ::
नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महाविशाला । नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
रूप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा ॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भईं फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा कर प्रह्लाद बचायो । हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं । श्री नारायण अंग समाहीं ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता । भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजे ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत । तिहुंलोक में डंका बाजत ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछितायो ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ॥
जब लगि जियउं दया फल पाऊं । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परमपद पावै ॥
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

देवी पूजन की विशेष सामग्री:
- माता की प्रतिमा स्थापित करने के लिए चौकी
- मां अम्बे की तस्वीर
- चौकी पर बिछाने के लिए लाल या फिर पीला कपड़ा
- मां के लिए चुनरी या साड़ी
- 'दुर्गासप्तशती' किताब
- एक कलश
- ताजा आम के पत्ते धुले हुए
- फूल माला और कुछ फूल
- एक जटा वाला नारियल
- पान, सुपारी, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, सिंदूर, मौली या कलावा, अक्षत यानी साबुत चावल
मां शैलपुत्री का प्रभावशाली मंत्र...
वन्दे वान्‍छित लाभाय चन्द्र अर्धकृत शेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

शारदीय नवरात्रि 2019 की तिथियां...
- 29 सितंबर को नवरात्रि के पहला दिन मां शैलपुत्री की पूजा
- 30 सितंबर को नवरात्रि के दूसरा दिन मां बह्मचारिणी की पूजा
- 01 अक्‍टूबर को नवरात्रि के तीसरा दिन मां चंद्रघंटा की पूजा
- 02 अक्‍टूबर को नवरात्रि के चौथा दिन मां कुष्‍मांडा की पूजा
- 03 अक्‍टूबर को नवरात्रि के पांचवां दिन मां स्‍कंदमाता की पूजा
- 04 अक्‍टूबर को  नवरात्रि के छठा दिन मां सरस्‍वती की पूजा
- 05 अक्‍टूबर को नवरात्रि के सातवें दिन मां कात्‍यायनी की पूजा
- 06 अक्‍टूबर को नवरात्रि के आठवां दिन मां कालरात्रि की पूजा और कन्‍या पूजन
- 07 अक्‍टूबर को  नवरात्रि के नौवें दिन मां महागौरी की पूजा, कन्‍या पूजन
- 08 अक्‍टूबर को  दशहरा

साल में आती हैं 4 नवरात्रि:
एक साल में कुल 4 नवरात्रि आती हैं। जिनमें 2 गुप्त और 2 प्रकट नवरात्रि होती हैं। सभी नवरात्रि में से इन नवरात्रि का खास महत्व माना गया है। मान्यता है कि इसकी शुरुआत भगवान राम ने की थी। भगवान राम जब रावण का वध करने जा रहे थे तो उन्होंने समुद्र तट पर नौ दिनों तक देवी मां की विधिवत पूजा की थी। और दशवें दिन रावण का वध कर दिया। नवरात्रि को लेकर दूसरी मान्यता ये भी है कि मां दुर्गा ने इन दिनों राक्षस महिषासुर का वध किया था। 
माँ दुर्गा की चौकी स्थापित करने की विधि
नवरात्री के पहले दिन एक लकड़ी की चौकी लें। इसको गंगाजल से पवित्र कर लें और इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछा लें। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ शेरावाली की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा की फोटो स्थापित करनी चाहिए। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ाए और उनसें नौ दिनों तक इस चौकी पर विराजने के लिए प्रार्थना करें। उसके बाद माँ को दीपक दिखाइए और धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। प्रसाद स्वरूप फल और मिठाई अर्पित करें।

बहुत समय बाद आएं हैं पूरे 9 नवरात्र 2019
काफी समय बाद शारदीय नवरात्र व्रत पूरे नौ दिन के होंगे। 29 सितंबर से प्रारम्भ होकर 8 अक्तूबर तक यह चलेंगे। 8 अक्टूबर को विजय दशमी है। इस दिन देवी प्रतिमाओं का विसर्जन होगा। बहुत समय बाद किसी तिथि का क्षय नहीं है। क्रमवार सभी नवरात्र व्रत होंगे। पहला दिन शिव शक्ति, दूसरा दिन ब्रह्म शक्ति, तीसरा दिन रुद्र शक्ति, चौथा दिन साध्य शक्ति, पांचवा दिन शिव शक्ति, सातवां दिन काल शक्ति, आठवां और नवां दिन विष्णु शक्ति का प्रतीक है।

शारदीय नवरात्रि का महत्व...
वैसे तो साल में चार नवरात्रि आती हैं, जिनमें से दो मुख्य रूप से और दो गुप्त रूप से मनाई जाती है। चारों नवरात्रियों में शारदीय आश्विन नवरात्रि का सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है। शरद ऋतु की इस आश्विन नवरात्रि को माँ दुर्गा की असुरों पर विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है, इसलिए नौ दिनों तक माँ दुर्गा के विभिन्न नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है।

नवरात्रि माता की आरती/Maiya Ki Aarti (Ambe Tu Hai Jagdambe Kali Aarti) :
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥
सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली, दुष्टों को तू ही ललकारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता। पूत-कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता॥
सब पे करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली, दुखियों के दुखड़े निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना।
हम तो मांगें तेरे चरणों में छोटा सा कोना॥
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली, सतियों के सत को संवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
चरण शरण में खड़े तुम्हारी, ले पूजा की थाली।
वरद हस्त सर पर रख दो माँ संकट हरने वाली॥
माँ भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओं वाली, भक्तों के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥

मां दुर्गा की आज ऐसे करें पूजा...
नवरात्रि के पहले दिन घर के पूजा स्थान को अच्छे से साफ करें। फिर पूजा घर में या किसी अन्य किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिट्टी से वेदी बना लें और उसमें जौ और गेहूं दोनों मिलाकर बो लें। वेदी पर या फिर उसके पास पवित्र स्थान पर पृथ्वी का पूजन कर मिट्टी का कलश स्थापित करें। कलश आप अपनी श्रद्धानुसार सोने, चांदी या फिर तांबे का भी ले सकते हैं। कलश स्थापित करने के बाद उस कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर उसके मुंह पर सूत्र बांध लें। फिर भगवान गणेश की पूजा करें और बनाई हुई वेदी के किनारे पर देवी मां की मूर्ति स्थापित करें। इस दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करें और इसके बाद देवी अम्बे की आरती कर प्रसाद वितरित कर दें ।

कलश स्थापना का महत्व...
एक माध्यम में, एक ही केंद्र में समस्त देवताओं को देखने के लिए कलश की स्थापना की जाती है। कलश को सुख- समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला माना जाता है। इसलिए समस्त मंगलकारी कार्यों में इसका होना जरूरी होता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना गया है। नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित सभी शक्तियों का कलश में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है तथा सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।

मां शैलपुत्री की ऐसे करें पूजा...
मां का ये स्वरूप बेहद ही शुभ माना जाता है। इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल है और ये देवी वृषभ पर विराजमान हैं जो संपूर्ण हिमालय पर राज करती हैं। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने के लिए इनकी तस्वीर रखें और उसके नीचें लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। इसके ऊपर केसर से शं लिखें और मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। इसके बाद हाथ में लाल फूल लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें और इस मंत्र का जाप करें – ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:। मंत्र के साथ ही हाथ में लिये गये फूल मनोकामना गुटिका एवं मां की तस्वीर के ऊपर छोड दें। इसके बाद माता को भोग लगाएं तथा उनके मंत्रों का जाप करें। यह जप कम से कम 108 बार होना चाहिए।

नवरात्रि पूजा वाले दिन किन चीजों की होती है आवश्यकता, जानें पूजन सामग्री लिस्ट
रोली, मौली, केसर, सुपाड़ी, चावल, जौ, सुगन्धित पुष्प, इलाइची, लौंग, पान, सिंदूर, श्रंगार, दूध, दही, शहद, गंगाजल, चीनी, जल, वस्त्र, आभूषण, बिल्वपत्र, यज्ञोपवित कलश, चंदन, दूर्वा, आसन के लिए लाल कपड़ा, पीली हल्दी, मिट्टी, थाली, कटोरी, नारियल, दीपक, आम की पत्तियां।

नवरात्रि के पहले दिन की जाती है घटस्थापना
नवरात्रि शुरू हो गई है। पहला दिन पूजा पाठ की दृष्टि से काफी महत्व रखता है। आज घरों में घटस्थापना की जा रही है। साथ ही माता के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की आज पूजा का विधान है।

नवरात्रि में किया जाता है सप्तशती का पाठ जानें इसके नियम...
1.दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले प्रथम पूज्य गणेश की पूजा करनी चाहिए। यदि घर में कलश स्थापन किया गया है तो पहले कलश का पूजन, फिर नवग्रह की पूजा और फिर अखंड दीप का पूजन करना चाहिए। दुर्गा सप्तशती पाठ से पहले दुर्गा सप्तशती की किताब को लाल रंग के शुद्ध आसन पर रखें। फिर इसका विधि-विधान पूर्वक अक्षत, चंदन और फूल से पूजन करें। इसके बाद पूरब दिशा की ओर मुंह करके अपने माथे पर अक्षत और चंदन लगाकर चार बार आचमन करें। दुर्गा सप्तशती पाठ के नियम जाने यहां

नवरात्रि पूजन विधि...
नवरात्रि पूजन विधि: नवरात्रि के पहले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। उसके बाद घर के पूजा स्थान को अच्छे से साफ करें। फिर पूजा घर में या किसी अन्य किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिट्टी से वेदी बना लें और उसमें जौ और गेहूं दोनों मिलाकर बो लें। वेदी पर या फिर उसके पास पवित्र स्थान पर पृथ्वी का पूजन कर मिट्टी का कलश स्थापित करें। कलश आप अपनी श्रद्धानुसार सोने, चांदी या फिर तांबे का भी ले सकते हैं। कलश स्थापित करने के बाद उस कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर उसके मुंह पर सूत्र बांध लें। फिर भगवान गणेश की पूजा करें और बनाई हुई वेदी के किनारे पर देवी मां की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्ध, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, नमस्कार, प्रार्थना आदि से पूजन करें। इस दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करें और इसके बाद देवी अम्बे की आरती कर प्रसाद वितरित कर दें ।

माता की कृपा पाने के लिए ये करें...
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ करने से प्रसन्न होंगी मां शक्ति, संस्कृत या हिंदी में यहां से पढ़ें दुर्गा सप्तशती पाठ

दुर्गा चालीसा: Durga Chalisa (Durga Puja Path) Navratri Katha
नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महाविशाला । नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
रूप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा ॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भईं फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा कर प्रह्लाद बचायो । हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं । श्री नारायण अंग समाहीं ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता । भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥
केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजे ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत । तिहुंलोक में डंका बाजत ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछितायो ॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावे । मोह मदादिक सब विनशावै ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ॥
जब लगि जियउं दया फल पाऊं । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परमपद पावै ॥
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

अखंड ज्योति जलाने के लिए:
- पीतल या मिट्टी का दीपक
- घी और रुई या बत्ती
- दीपक पर लगाने के लिए रोली
- घी में डालने और दीपक के नीचे रखने के लिए चावल

नौ दिन के लिए हवन सामग्री:
- हवन कुंड, आम की लकड़ी, काले तिल, चावल, जौ, धूप, चीनी, पंच मेवा, घी, लोबान, गुग्ल, लौंग का जौड़ा, कमल गट्टा, सुपारी, कपूर, मिठाई, आचमन के लिए शुद्ध जल

लग्न अनुसार जानिए कब करें कलश स्थापना:
कन्या-लग्न- -05.38 से 07.46 तक।
धनु-लग्न- दोपहर 12.16 से 02.21 तक।
कुंभ-लग्न 04.09 से 05.43 तक।
मेष -लग्न- रात्रि 07.14 से 08.56 तक।
वृषभ-लग्न रात्रि 08.56 से 10.55।


कलश स्थापना के लिए सामग्री:
एक कलश, नारियल में बांधने के लिए कलावा, 5, 7 या 11 आम के साफ पत्ते, कलश पर स्वास्तिक बनाने के लिए रोली, कलश में भरने के लिए शुद्ध जल और गंगा जल, केसर और जायफल जल में डालने के लिए, सिक्का, कलश के नीचे चावल या गेहूं

जौ या जवारे बोने के लिए सामग्री:
मिट्टी का बर्तन, साफ मिट्टी, जवारे बोने के लिए जौ या गेहूं, मिट्टी पर छिड़कने के लिए जल, मिट्टी के बर्तन पर बांधने के लिए धागा या मौली

माता के श्रंगार के लिए: (Navratri Puja samagri, Muhurt, Kalash sthapana)
लाल चुनरी, बिछिया, चूड़ी, इत्र, सिंदूर, महावर, मेहंदी, बिंद्दी, चोटी, काजल, माला, पायल, नेलपॉलिश, लिपिस्टिक, चोटी पर लगाने के लिए रिबन, कान की बाली या इन सबकी बजाय माता की श्रंगार किट भी ले सकते हैं।

नवरात्रि पूजन विधि: Navratri Pujan Vidhi
- इस कलश को जहां जौ बोएं हैं उसके पास या फिर उसके ऊपर रख दें।
- कलश के पास दुर्गा मां की मूर्ति स्थापित करें और उनकी पूजा में फूल, माला, रौली, कपूर, अक्षत और धूप दीपक का प्रयोग करें।
- नौ दिन तक सुबह शाम माता की पूजा करें उनके मंत्रों का जाप करें और दुर्गासप्तशती का पाठ करें।
- अष्टमी और नवमी के दिन नौ कन्याओं को घर बुलाकर उनका पूजन करें, उन्हें भोजन कराएं और दान दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें और अपना व्रत खोल लें।
- नवरात्रि के आखिरी दिन यानी दशवें दिन मां दुर्गा की पूजा के बाद घट विसर्जन करें फिर बेदी से कलश को उठा लें।

नवरात्रि पूजन विधि: Navratri 2019 Start Date, Pujan Vidhi, Vrat, Muhurt
- नवरात्रि पर सुबह जल्दी उठें और स्नान कर साफ सुथरे होकर घर के मंदिर की सफाई करें।
- पूजा घर में सभी जरूरी सामग्रियों को इकट्ठा कर लें।
- एक थाली लें उसमें पूजा का समान रखें।
- मां दुर्गा की फोटो को साफ कर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर रख दें।
- अब मिट्टी के पात्र में जौ बोएं और नौ दिनों तक उसमें पानी का छिड़काव करते रहें।
- जौ बोने के लिए साफ मिट्टी लेकर उसमें जौ के दाने डाल दें।
- कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त देखकर कलश स्थापना की तैयारी करें।
- इसके लिए एक कलश लें उसमें लाल कपड़ा लपेंटे और साफ पानी और गंगा जल से उस कलश को भर दें। उस कलश के ऊपर आम की पत्तियां रखकर नारियल रख दें। नारियल पर लाल चुनरी एक कलावे के माध्यम से बांधे।

Navratri 2019 2nd Day Puja Vidhi, Vrat Katha, Aarti, Mantra: नौ दिनों का व्रत रखने वाले आज इन मंत्रों का उच्चारण करें, आरती से संपन्न करें पूजा

Navratri 2019 2nd Day, Maa Brahmacharini Puja Vidhi, Vrat Katha, Aarti, Mantra: मां ब्रह्मचारिणी मां (Mata Brahmacharini) पार्वती का दूसरा स्वरूप हैं। मां के इस स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।

Navratri 2nd Day, Maa Brahmacharini Puja Vidhi, Vrat Katha, Aarti, Mantra: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई वर्षों तक बेहद ही कठिन तपस्या की थी। इसी कारण मां दुर्गा का एक नाम ब्रह्मचारिणी पड़ गया था। मां का ये रूप निराला है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी (maa brahmacharini)। जानिए मां के इस स्वरूप की कैसे करें अराधना, क्या है पूजा विधि, व्रत कथा, आरती, मंत्र…

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि (Maa Brahmacharini Ki Puja Vidhi) :

मां ब्रह्मचारिणी मां पार्वती का दूसरा स्वरूप है। मां के इस स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। साथ ही जीवन के सभी कष्टों से छुटकारा प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से पहले स्नान करके साफ वस्त्र धारण कर लें। देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें। इसके बाद देवी को पंचामृत (दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु ) से स्नान करायें और फूल, अक्षत यानी कि साबुत चावल, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें। पूजा में लाल फूल का विशेष रूप से इस्तेमाल करें। पूजा में इस मंत्र का जाप करें- इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलु देवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा। इसके बाद कथा सुनें और घी और कपूर से देवी की आरती उतारें। अंत में मां को मिठाई का भोग लगाकर पूजा संपन्न करें।

नैना देवी मंदिर में होती है मां ब्रह्मचारिणी की खास पूजा
मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठ देश के अलग अलग भागों में स्थापित हैं। इनमें से एक है नैना देवी मंदिर। आज नवरात्रि के दूसरे दिन इस मंदिर में अन्य मंदिरों की भांति ब्रह्मचारिणी मां की खास पूजा होती है। मान्यता है कि यहां मां दुर्गा के नयनों से अश्रु गिरे थे इसलिए इस मंदिर का नाम नयनादेवी पड़ गया। यह मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल में नैनी झील के किनारे स्थित है। यह मंदिर नेपाल की पैगोड़ा और गौथिक शैली का समावेश है। 15वीं शताब्दी में बने इस मंदिर को प्राकृतिक आपदा के कारण बहुत नुकसान हुआ। इसके बाद 1883 में, मंदिर स्थानीय लोगों द्वारा फिर से बनाया गया।

 maa Brahmcharini Puja mantra, stuti
नवरात्रि पूजा के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी मां की पूजा होती है। नौ दिनों की इस पूजा में मां दुर्गा के अलग अलग 9 स्वरूपों की पूजा होती है। आइए जानते हैं कि आज मां ब्रह्मचारिणी की संध्या पूजा में किन बातों का ख्याल रखना चाहिए।

इस मंत्र का उद्घोष करें:
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

मां ब्रह्मचारिणी से ये करें प्रार्थना:
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

मां दुर्गा की स्तुति:
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

स्मरण शक्ति बढ़ाती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
नवरात्रि में आज ​दूसरा दिन है और ब्रह्मचारिणी मां की आराधना की जा रही है। आपको बता दें कि मां के इस स्वरूप को औषधि के रूप में भी देखा जाता है। ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी भी कहा जाता है, सामान्य तौर पर ब्राह्मी का उपयोग आयु व स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली औषधियों में किया जाता है। ब्राह्मी से वायु संबंधी विकार और मूत्र संबंधी रोगों का निदान किया जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी की कथा (Maa Brahmacharini Katha In Hindi) : 
मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारद जी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन व्रत रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह आप से ही संभव थी। आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं।

ब्रह्माचारिणी देवी की आरती (Maa Brahmacharini Ki Aarti) :
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो ​तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।

मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र (Maa Brahmacharini Ke Mantra) : Navratri 2019 2nd Day, Know Puja Vidhi, Mantra, Aarti
1.या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
2. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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